यह भारतीय आजादी के अमृत पर्व का वर्ष है।
हमारे देश के हजारों और लाखों स्वतंत्रता सेनानियों, समाज सुधारकों, क्रांतिकारियों और जनता के बलिदान, समर्पण, समर्थन और संघर्ष से
भारत को आजादी मिली। इस आजादी के पचहत्तर साल बीत चुके हैं।
ब्रिटिश सरकार ने भारत पर डेढ सौ वर्षों तक शासन किया। ५६४ छोटे-बडे संस्थानिक/राजा अंग्रेजों के मांडलिक थे। इनमें बडोदा संस्थान और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच मित्रता की एक बुनियादी संधि थी।
किशोर सयाजीराव गायकवाड (तृतीय) ने इसका अध्ययन किया। सयाजीराव ने संप्रभुता के सूत्र में यह पाया कि वे ब्रिटिश सरकार के मंडलिक नहीं मित्र थे।
उन्होंने इस धागे को कूटनीति से मजबूत किया। सयाजीराव को अपने स्वतंत्र अस्तित्व का विश्वास प्राप्त हुआ।
इस पृष्ठभूमि में दूरदर्शी सयाजीराव गायकवाड अपनी सूझ-बूझ और गुरिल्ला कावा से स्वतंत्रता संग्राम के समर्थक बन गए। अरविंद घोष, बॅ. केशवराव देशपांडे, खासेराव जाधव ये स्वतंत्रता सेनानि बडोदा में काम करके क्रांतिकारियों की मदद करने लगे।
सयाजीराव गायकवाड की इन देशद्रोही गतिविधियों के खिलाफ ब्रिटिश सरकार ने सीआईडी के जासूस तैनात किए गए थे।
सयाजीराव गायकवाड ने छत्रपति शिवराय के गुरिल्ला कावा से संघर्ष कर सीआईडी को हताश कर दिया।
ठोस सबूतों के अभाव में ब्रिटिश सरकार को राजद्रोह के आरोपों की एक-एक फाइल जबरदस्ती बंद करनी पडी।
अंग्रेजों ने दस्तावेजों को ‘A Banded Box Case’ से सील कर साठ साल तक गुप्त रखा ताकि कोई उन्हें देख न सके। इनमें से १५ फाइलें आजादी के अमृत पर्व महोत्सवी वर्ष में प्राप्त हुई हैं।
स्वतंत्रता संग्राम के समर्थक सयाजीराव बेदाग चरित्र के देशभक्त, लोकतांत्रिक, स्वतंत्र राजा थे।
सयाजीराव की स्थिति ‘संप्रभु राजा’ की थी। सयाजीराव गायकवाड इंग्लैंड के सुप्रीम कोर्ट में इस संदर्भ में मुकदमा जीत चुके थे।
भारत में ब्रिटिश सत्ता की पराजय का यह नया ‘स्वदेशी’ इतिहास इंग्लैंड के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश से प्रकाश में आ रहा है।
Reviews
There are no reviews yet.